एक शाम की विदा निशानी !
व्याकुल नयनों की बेताबी
पीपल के सायों में संहित
आती जाती पतली गलियों के
नुक्कड़ के आमों में संचित ,
नयी पुरानी कच्ची पक्की
रस्मों कसमों वाली गठरी
टेढ़ी मेढ़ी -- सीधी सादी
सपनों वाली नाजुक टहनी ,
कभी लिखी जो गयी प्राण पर
तेरी साँसों से अमर कहानी ,,
अब तक जिससे गीत बने वो
एक शाम की विदा निशानी !!
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