Monday, February 4, 2013

जो तेरे इश्क में सीखे हैं रतजगे मैंने,,,

एक धुंधली हुई तस्वीर कहीं आँखों में,, रोज बनती है उभरती है डूब जाती है,, एक कहानी जो अनजीयी है मुझमे कहीं,, मेरी रातों को रोज सूफिया कर जाती है,, एक खामोश समंदर में सफर करता हूँ,, खुद में पाली हैं यूँ ही कितनी हलचलें मैंने,, ये मेरी तल्ख़ हकीकत है मालुम है मुझे,, जो तेरे इश्क में सीखे हैं रतजगे मैंने,,,, इस भटकती हुई दुनिया में कहाँ जाऊं मैं,, मैंने पूंछा भी नहीं तूने बताया भी कहाँ ,, एक एहसास फकत गाता हुआ सड़कों पर ,, यूँ ही बिकता रहा मैं रोज खिलौनों की तरहा,, ये शोर तालियाँ उल्लास मेरी शोहरत सब,, अपनी मक्कारी में गम कितने छुपाये मैंने, बिन तेरे सब है मगर कुछ भी नहीं है इनमें,, जो तेरे इश्क में सीखे हैं रतजगे मैंने,,,

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