Monday, February 4, 2013
जो तेरे इश्क में सीखे हैं रतजगे मैंने,,
आज सालों बाद अपने शहर की उन गलियों में जाना हुआ,,,जो कभी हाथों में हाथ लिये दो परछाईयों की आदी थीं ,,,,,,उन गलियों में मिनटों में खत्म हो जाने वाला सफर आज इस एकाकी परछाईं के लिए घंटों में बदल गया ,,,,पता नहीं उन दिनों में तेरे साथ की बेताबी से समय जल्दी बीतता था,,या आज हर कदम पे तुम्हारी यादों की इबारतें मुझसे उन दिनों का हिसाब मांग रहीं थीं ,,,,,,पता नहीं पर उस गली के किनारे वाले इमली के पेड़ पे आज भी एक टूटी हुई कटी हुई पतंग लटक रही थी,,,पर अफ़सोस आज उसकी डोर हाथों में आ जा रही थी ,,,,,,,सच है ना ! सारे मायने ही बदल गये हैं,,,
मुझको मालुम है मेरे गीत सभी तेरे हैं,,
मुझमें कायम है तेरी रूह का कोई हिस्सा,,
सिर्फ और सिर्फ तेरी गूँज है जिन्दा मुझमे,,
वो कहानी हो गजल हो या हो कोई किस्सा ,,
मेरा तुझपे कोई अधिकार नहीं बाकी अब,,
एक एहसान है शायद न चुका पाऊंगा,,
तुझको गढता हुआ गीतों में यूँ ही मैं इक दिन,,
तेरी यादों में कहीं घुल के ही सो जाऊँगा,,,
फिर भी ये सोचता रहता हूँ मैं,,,
जब तलक जागूँ,,, मैं जी लूँ तुझे गा लूँ तुझे ,,
जाने कब आँखों के कोनों में सिमट जाएँ ये,,
जो तेरे इश्क में सीखे हैं रतजगे मैंने,,
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